जोशीमठ
बहुत ही पवित्र
स्थान है। यह माना जाता है कि महागुरू आदि शंकराचार्य ने यहीं पर ज्ञान प्राप्त किया था। इसके
अलावा यहां पर नरसिंह, गरूड मंदिर, आदि शंकराचार्य का मठ और अमर कल्प वृक्ष
है। यह
माना जाता है कि यह वृक्ष लगभग 2,500 वर्ष पुराना है। इसके अलावा तपोवन भी घुमा जा सकता है। इस शहर को
ज्योतिमठ भी कहा जाता है तथा
इसकी मान्यता ज्योतिष केंद्र के रूप में भी है।
यहां से
नंदा देवी, त्रिशूल, कमेत, माना पर्वत, दूनागिरी,
बैठातोली और नीलकंठ का बहुत ही सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। जोशीनाथ से जी.एम.वी.एन. तक केबल
कार की अच्छी सुविधा है।
पांडुकेश्वर
में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी,
जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। लगता है कि एक
क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा
जोशीमठ में अपनी राजधानी बसायी। वासुदेव कत्यूरी ही कत्यूरी वंश का
संस्थापक था। जिसने 7वीं
से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं
गढ़वाल पर शासन किया।
No comments:
Post a Comment