अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर
कर्णप्रयाग स्थित है। पिण्डर का एक
नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम
कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर
दर्शनीय है। यहां पर भगवती उमा का अत्यंत
प्राचीन मन्दिर है।
संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रुप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। यहीं पर
महादानी कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की
आराधना और अभेद्य कवच कुंडलों का प्राप्त किया जाना प्रसिद्ध है। कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही इस स्थान का
नाम कर्णप्रयाग पड़ा।
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